कविता संग्रह >> पका है यह कटहल पका है यह कटहलनागार्जुन
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पका है यह कटहल बाबा नागार्जुन की मैथिली भाषा में लिखी गई कविताओं का पठनीय संकलन है
जनचेतना की अभिव्यक्ति को मानदंड मानकर यदि सम्पूर्ण मैथिली साहित्य-धारा से तीन प्रतिनिधि कवियों को चुना जाय तो प्राचीन काल में विद्यापति, मध्यकाल में कवि फतुरी और नवजागरण काल में 'यात्री' का नाम आयेगा। नागार्जुन ने इस सदी के तीसरे दशक के उत्तरार्द्ध में लिखना प्रारम्भ किया-'वैदेह' उपनाम से। उस समय के प्रारम्भिक लेखन पर मिथिला के परिनिष्ठ संस्कृत पंडिताऊपन का प्रभाव स्पष्ट है; क्योंकि इसी माहौल में उन्हें शिक्षा प्राप्त करने का अवसर मिल पा रहा था। लेकिन वे पंडितों को कूपमंडूपता में अधिक दिनों तक फँसे न रह सके। मिथिला के आम लोगों के बीच चले आये, लेकिन देश-विदेश की ताजा अनुभूतियों से तृप्त होने के मोह को भी छोडू न पाये और वे मैथिली में 'यात्री' नाम से चर्चित हो गये 1 पुन: देश-विदेश के अनुभव-अनुसंधान के क्रम में बौद्ध भिक्षु नागार्जुन के रूप में जाने गये। आगे चलकर धर्म वगैरह का मुखौटा फेंकने के बाद भी हिन्दी में जनकवि बाबा नागार्जुन ही बने रहे। लोकचेतना से जुड़े आज के किसी भी कवि को समझने के लिए उसके व्यक्तित्व, सन्दर्भ और भाव- उत्स को जानना आवश्यक है। खास कर नागार्जुन जैसे कवि जो भाषा, भाव और शिल्प--तीनों दृष्टियों से जनता से जुड़े. हैं, उन्हें समझने के लिए उनकी अभिव्यक्ति की मूल (मातृ) भाषा मैथिली की कवि- ताओं को पढ़ना आवश्यक है जिनके माध्यम से उनके व्यक्तित्व की मुद्राओं, उनकी भूमि की सुगन्ध और ठेठ चुटीली सहजता को निरखा-परखा जा सकता है। इसीलिए जो बात, जो छुअन और उनकी 'खुदी' की पहचान इस संग्रह में उपलब्ध है, अन्यत्र सम्भव ही नहीं। पका है यह कटहल बाबा नागार्जुन की मैथिली भाषा में लिखी गई कविताओं का पठनीय संकलन है। अनुवादक हैं--सोमदेव तथा शोभाकांत मिश्र।
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